कांशीराम के बेडरूम में घुसने पर झापड़ खाने वाला आशुतोष पूछ रहा कि फोन करने का ये कोई टाइम है!
अभी मैंने आशुतोष को फोन किया. आईबीएन7 वाले को. तो भाई ने बोला कि ये कोई टाइम है फोन करने का. मैंने पूछा- ''भइया, हां या ना में बता दो कि इस्तीफा दिया है या नहीं, क्योंकि आपकी विदाई की फोटो शेयर हो रही है फेसबुक पर''. तब भी भाई मुझे घुड़कता रहा, बोलता रहा कि... ''ये कोई टाइम है भला फोन करने का''.
हद है यार.
ये वही आशुतोष भाईसाहब हैं जो बिना बुलाए दिन दहाड़े कांशीराम के घर में ही नहींबल्कि बेडरूम में घुस गए थे और झापड़ खाकर बाहर निकले थे. और, उसी के बाद एसपी सिंह के रहमोकरम पर पत्रकार बन गए थे. पर अब यही महोदय खबर के लिए फोन किए जाने पर समय का हवाला दे रहे हैं.
बताया जा रहा है कि ये आशुतोष महाशय आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लडेंगे लोकसभा का, इसलिए पत्रकारिता नामक महान पेशे का दिल पर पत्थर रखकर महान त्याग किया है. अगर ऐसे लोगों ने आम आदमी को चपेटे में ले लिया तो खून चूसने वाले जंगली छोटे जानवरों के जीवन का क्या होगा और उन मोटे जानवरों के खून का क्या होगा जिसका इंतजार जंगली छोटे खूनपिस्सू प्राणी करते हैं.. लगता है प्रकृति का संतुलन गड़बड़ाने वाला है...
पता नहीं अरविंद केजरीवाल के पास कोई छननी बची है या नहीं या फिर दिल्ली प्रदेश में चुनाव जीतने के बाद इन 'आप' वालों की छननी छलनी-छलनी हो चुकी है... जो भी हो, वे खुद जानें.. लेकिन सैकड़ों मीडियाकर्मियों की नौकरी खाने वाले आशुतोष जैसे कार्पोरेट संपादकों की जगह आम आदमी पार्टी में हो गई तो भगवान जाने ये पार्टी कैसे आम आदमी की रह पाएगी....
सुना तो ये भी है कि आम आदमी पार्टी वाले अब अपने यहां जहाज कंपनियों के प्रबंधकों से लेकर बैंकरों तक और माफियाओं के परिजनों से लेकर पुराने गिरहकटों तक को टिकट देने को तैयार बैठे हैं. अगर ये सच है तो हम सब कुछ दिन बाद आम आदमी पार्टी के पर्चे को जहाज बनाकर आने वाले बरसात में अपने अगल-बगल की चोक गलियों नालियों में बहाया-भगाया करेंगे... या फिर उसे इतिहास अतीत की बातें मानकर रद्दी के भाव कबाड़ी साथियों को बेच बैठेंगे, ताकि किसी गरीब का तो घर चले...
पढ़ते रहिए डंके की चोट पर...
From: bhadas4media.com
Via: Pashyanti Shukla
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